सवैया छंद
कभी भी नहीं छोड़ना हाथ माते , करें प्रार्थना मान लीजे हमारी ।
बचा लो हमें घेरने आ रही है , शिकारी बनी मात माया तुम्हारी ।।
हमें बुद्धि दो ज्ञान दो माँ भवानी , थमा दो हमें लेखनी की दुधारी ।
जियें छंद में लीन हो के सदा ही, कृपा कीजिये मात कल्याणकारी ।।
-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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