सवैया छंद
‘राधा-कृष्ण’ (विरह-वर्णन)
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हरि छोड़ गए जिस हाल हमें, यमुना तट आज रुलावत है।
घट नीर लिए उर पीर उठी,अब कूल- तरंग न भावत है।
अँधियारि अमावस सावन की, बिन श्याम सखी न सुहावत है।
बरसे बदरा हुलसे जियरा, मुरली धुन याद दिलावत है।
सुख-चैन चुराय लियो माधव, छवि देखन को जिय डोल रहो।
बहता कजरा मुरझा गजरा,सुन भेद जिया अब खोल रहो।
सरकी चुनरी लुढ़की गगरी,हिय मोहन- मोहन बोल रहो।
सुधि को बिसरा जग ढूँढ़त हूँ ,तव नाम पिया अनमोल रहो।
नल नाद सरोवर सूख गए, दुख पाहुन, पेड़ छुपाय रहे।
नयना नहिं माखन, दूध तकें, बिन नंदलला अकुलाय रहे।
मुसकान छिनी, पसरा मातम, घर-आँगन शोक मनाय रहे।
मुरलीधर पूरण चाह करो, भज केशव रैन बिताय रहे।
जिय धीर धरे न रमे जग में, तम को हर के उजियार करो।
ब्रज वापस आन बसो मन में, हर कष्ट सुनो व्यवहार करो।
अब घोर निशा- तम दूर भगा, तुम आ मम संकट पार करो।
वृषभान लली कर जोड़ कहे, इस जीवन पर उपकार करो।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)