सवेरा
लघुकथा
शीर्षक – सवेरा
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” अम्मा मेरा चुनाव चिन्ह याद रखना और वोट मुझे ही देना”- नेता जी ने अम्मा के पांव छू कर कहा l
– ” चुनाव आते ही तुम नेताओं को क्या हो जाता है,,, सरपट दौड़े चले आते हैं,,, कभी इस गाँव में कभी उस गाँव में,,,, फिर होते हैं लंबे-चौड़े भाषण.. ये करना है वो करना है… बस झूठे वादे,,,, फिर पांच साल तक तुम्हारी शक्ल भी दिखाई भी न देती,,,, ”
– ” लेकिन अम्मा मै तुम्हारे गाँव और तुम्हारी जाति का हूँ, मेरा तो हक है तुम्हारे वोट पर,,, ”
– ” अरे चुप कर करमजले, काहे की जाति और काहे का गाँव,,, कुर्सी मिलते ही तुम सब भूल जाते हो,,, अब मै और मेरा गाँव उसे ही वोट देगा जो देश हित की बात करता हो,,, , बहुत जी लिये हम अंधेरों में… अब सवेरा हो गया है,,, हम सब धर्म-जाति से ऊपर उठकर देश को वोट करेंगे, विकाश को वोट करेंगे….. समझे,, “- अम्मा एक झटके में अपना निर्णय सुनाकर अपने काम में व्यस्त हो गयी।
राघव दुबे
इटावा (उoप्रo)
84394 01034