“सवारने की चाह”
सवारने की चाह में हर बार बिखर जाते हैं।
इतने नासमझ है कि हर बार धोखा खाते हैं।
तरसते थे जो हमारे लिए कल,
आज वो भी हम पे बरसने लगे हैं।
हम किस से कहे हाल ए दिल,
अब तो जीते जी मरने लगे हैं।
सवारने की चाह में हर बार बिखर जाते हैं।
इतने नासमझ है कि हर बार धोखा खाते हैं।
तरसते थे जो हमारे लिए कल,
आज वो भी हम पे बरसने लगे हैं।
हम किस से कहे हाल ए दिल,
अब तो जीते जी मरने लगे हैं।