‘सलाह’ किसकी मानें और कितनी मानें (सर्वाधिकार सुरक्षित)
सलाह एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक अभिव्यक्ति है । किसी समस्या से त्रस्त व्यक्ति को सही समय पर सही सलाह मिल जाये तो निश्चित ही वह मानसिक परेशानियों एवं समस्याओं से सहज ही बाहर आ सकता है । अच्छी या बुरी ‘सलाह’ किसी भी व्यक्ति के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन ला सकती है । परन्तु प्रश्न यह है कि सलाह किससे ली जाये ?
हमारे आस-पास अनेकानेक लोग हैं जिनमें हमारे सगे-संबंधी तो कुछ इष्ट-मित्र हैं जो हमसे जुड़े हुए हैं और हमारे जीवन में एक विशेष भूमिका निभाते हैं । ये सभी व्यक्ति अपने-अपने मानसिक स्तर या आप पर अपना प्रभाव जमाने अथवा स्वयं को बहुत ज्ञानी व अनुभवी सिद्ध करने के लिए अपनी-अपनी सलाह देते हैं ।
कई बार देखने में आता है कि लोग स्वयं की ईगो को संतुष्ट करने के लिए हम पर अपनी सलाह मानने का दवाब भी बनाते हैं । ऐसे में बेचारा परेशान व्यक्ति धर्म संकट में पड़ जाता है । वास्तविक समस्या तो तब आती है जब किसी की बेमतलब की अर्थहीन सलाह को भी मानना पड़े क्योंकि यदि सलाह नहीं मानी तो सलाहकार के नाराज़ होने और उनसे संबंध बिगड़ने का भय भी रहता है । कई लोग बिना माँगे भी सलाह देते हैं और आशा करते हैं की उनकी बात मानी जाये ।
वास्तव में सलाह क्या है और इसके औचित्य की पहचान कैसे की जाये ? किसे माना जाये और किसे नकार दिया जाये ?
अनुभवी विद्वान कहते हैं कि वे सलाह जो कुछ समय के लिए परेशान करे, कठिन लगे परन्तु उन सामयिक समस्याओं को झेलने के बाद जीवन में एक स्थायी सकारात्मक परिवर्तन ला सकने में सक्षम हो वही सलाह उचित सलाह है ।
ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य में नेगेटिव और पोज़ीटिव दोनों ही प्रकार की वायरिंग की है या यूँ भी कह सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति में सुर देवता अथवा असुर दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियाँ हैं जो समय-समय पर उभरकर सामने आती हैं । एक व्यक्ति एक विषय पर स्वयं के अनुभव के आधार पर सलाह दे, ये तो संभव है परन्तु व्यक्ति हर विषय पर सही सलाह दे सके ये ज़रा मुश्किल है ।
प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन की परिस्थितियों के आधार पर कभी खुश तो कभी दुखी अथवा दोनों के प्रभाव से प्रभावित रहता है । अत: किसी भी व्यक्ति द्वारा दी गई सलाह को अपने विवेक की कसौटी पर कसना आवश्यक है । लोगों की सलाह वहाँ तक माननी चाहिए जहाँ तक हमें ठीक लगे किसी की नाराजगी से बचने के लिए या किसी को खुश करने के लिए मानी गई सलाह अंत में दुःख और पछतावा ही देती है । तो क्या किया जाये कि किसी की सलाह नकारने पर उसे बुरा भी न लगे और हमारे संबंध भी अच्छे बने रहें ?
इसका एक उपाय है किसी की सलाह अपने अनुकूल न लगने पर उसे अति-विनम्रता से मना कर दिया जाये । इस प्रकार सलाहकार को बुरा भी नहीं लगेगा और आपका काम बन जाएगा । वहीं यदि आपने सलाहकार की उपेक्षा की या उसे अनुभवहीन, मुर्ख समझने की कोशिश की तो निश्चित ही संबंध बिगड़ते देर नहीं लगेगी ।
अत: किसी की सलाह को मानने से पूर्व पूरी-पूरी सावधानी रखनी चाहिए । किसकी,कितनी सलाह माननी है उसे अपने विचार व विवेक से समझ लेना चाहिए । इससे पछताना नहीं पड़ता और समस्या का समाधान भी आसानी से हो जाता है ।