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26 Sep 2023 · 1 min read

सर-ए-बाजार पीते हो…

निकाले रोज़ जाते हो नगर की नालियों से तुम
निकल आते तो अच्छा था नशे की जालियों से तुम

सर-ए-बाजार पीते हो हया भी पी गए हो क्या
नवाजे कबतलक जाओगे यूँ ही गालियों से तुम

तुझे मालूम है लत ये तुझे बर्बाद कर देगी
लटक जाते हो फिर भी मौत की इन डालियों से तुम

नहीं है अन्न घर में पर नशे की कैद में आकर
यूँ कबतक जान का सौदा करोगे प्यालियों से तुम

सफर में ही अगर ‘आकाश’ इतना लड़खड़ाते हो
भला कैसे लड़ोगे वक़्त की बदहालियों से तुम

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 24/09/2023

1 Like · 273 Views
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