#सर्वश्रेष्ठ दोहे सात
निर्बल कोई भी नहीं,ख़ुद से है अनजान।
लकड़ी भीतर आग है,जले तभी पहचान।। //1//
औरों की सुनता चला,अपने भूल उसूल।
पहचानेगा कौन फिर, बन तेरे अनुकूल।।//2//
बातें करते लोग लख,परेशान हो चोर।
वो समझे तेरी करें,चुगली सब चहुँओर।।//3//
सच अच्छाई ख़ोजिए,अपने भीतर आप।
ख़ुशबू अंदर फूल के,जिससे उसका जाप।।//4//
नीयत अच्छी राखिए,होंगे सारे काम।
जैसी करनी आपकी,वैसा मिले मुक़ाम।।//5//
छलिया का आभार कर,जाना उसका भेद।
फूँक-फूँक कर पाँव रख,रहे न ख़ुद पर खेद।।//6//
देने वाला और है,पाने वाले आप।
पाकर देते और को,बढ़ता तभी प्रताप।।//7//
#सर्वाधिकार सुरक्षित दोहे
#दोहाकार-आर.एस.’प्रीतम’