” सर्पीली रात है ” !!
हम भी चुप हैं , तुम भी चुप ,
मौन करे , घात है !
जाने कितने , दंश सहे ,
सर्पीली , रात है !!
साथ दिवस , इतने बीते ,
गांठ रही , छूट है !
कोई बाँध , ना सके है ,
बंधन में , टूट है !
अपनी चाल , सब चले हैं ,
शह है , या मात है !!
जाने किेतने , दंश सहे ,
सर्पीली , रात है !!
संधि पत्र , भीगें भीगें ,
पलकों की , कोर से !
किसने , काटी है पतंग ,
अपनी ही , डोर से !
दोषी कौन , है यहाँ पे ,
इतना तो , ज्ञात है !!
जाने किेतने , दंश सहे ,
सर्पीली , रात है !!
हमने प्यार , जब किया तो ,
किसकी , परवाह की !
अपनों ने , मूंदी आँखें ,
हमसे ही , डाह की !
मयूरपंखी , सपनों के ,
बिखरे से , पाँख है !!
जाने किेतने , दंश सहे ,
सर्पीली , रात है !!
ऐसे मोड़ , पर खड़े हैं ,
राह नहीं , सूझती !
प्रश्न कई , सुलझे नहीं ,
चाह नहीं , बूझती !
कौन अब , संवारे यहाँ ,
बिगड़े , हालात हैं !!
जाने किेतने , दंश सहे ,
सर्पीली , रात है !!
तेरा मेरा , हो प्रयास ,
अंतिम इक , दाँव हो !
डिग न जाये , फिर कदम ये ,
अंगद सा , पाँव हो !
बिगड़ी बस , बन ही जाये ,
इतनी सी बात है !!
जाने किेतने , दंश सहे ,
सर्पीली , रात है !!
रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )