सर्पदंश के पहिचान आ बचाव
बरसात में बिसैला सर्प दंश के लक्षण आ बॅंचाव–चौपाई के माध्यम से
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आइल बा बरसात डराईं।
घरे तनी सॅंवकेरे आईं।।
सॉंपन के दिन आइल बाटे।
कतहूॅं केहू के धइ काटे।।१।।
काटे साॅंप चिन्हाई कइसे।
हम बतलावत बानी तइसे।।
दूइ दॉंत गहिरे ले काटल।
गहुवन-करइत बिखिधर छॉटल।।२।।
ढेर दॉंत जब उखरल आई।
ऊ बिखिधर नइखे ए भाई।।
चिन्ता के तब बात न मानीं।
खतरा नइखे रउवा जानीं।।३।।
कुछ लच्छन बा बिखिधर कुल के।
इहाॅं बताईं हलुके – फुलके।।
दॉंत उगल लउकत बटले बा।
देखीं ऊ कबके कटले बा ।।४।।
गाज बहुत निकलेला मुॅंह से।
कुछऊ घोटल जा ना उह से।।
खूब पसेना तन से आवे ।
नस बइठल जा स्याही धावे।।५।।
दॉंते से ना कुछू कुचाला।
गड़ल दॉंत के दर्द बुझाला।।
पलक धसे लउके धुधुराहे।
सॉंस घुटन लागे अगवाहे।।६।।
कटलसि सॉंप करीं कुछ अइसन।
बतलावत बानी हम जइसन।।
धोईं साबुन से ओ ठांवे।
हिले – डुले ना अस्थिर नांवे।।७।।
कस के बन्हीं कुछ ऊपर से।
हास्पीटल पहुॅंचायीं फर से।।
झाड़-फूंक अब मत करवाईं।
एन्टीवेनम के लगवाईं।।८।।
जान बची तब लाखों पाईं।
इष्टदेव के तब गोहराईं।।
आस-पास में रखीं सफाई।
कूड़ा – करकट बील मुनाई।।९।।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**