सर्दी
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१.
कोहरे की छाया घनी धूप खीली ना आज,
बिद्यालय सब बंद हुये माँ के बढ गए काज।
माँ के बढगये काज काम हर दिन से ज्यादा,
पकवान छनौरी बन रही पनीर दो प्याजा।।
कहे ‘सचिन’कविराय ठंड से मन भी सीहरे
सूरज का हड़ताल दिखें कोहरे हीं कोहरे।।
२
जाड़ा ने इस वर्ष भी, किया खड़ा है खांट,
सर्दी इतनी बढ गई, काम करे ना हाथ।
काम करे ना हाथ, रजाई छोड़ें कैसे,
ठंढा पानी डाल, नहायें धोयें कैसे।
पानी छूते हीं दिन में दिखता तारा,
कोट स्वेटर पहनलो फिर भी लगता जाड़ा।।
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”