सर्दी के ठंडे दिन
सर्दी के ठण्डे दिन
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सर्दी के ठण्डे दिन
जाम कर देते तन
ठण्ड की ठिठुरन
पैदा करे अकड़न
लेने ना दे अंगड़ाई
रूक जाए जम्हाई
याद आती है रजाई
गर्म हलवे की कढाई
चहुँमुखी छाई है धुंध
खो देती है सुध-बुध
जहाँ भी जाए नजर
कुछ आए ना नजर
हीरे मोती सी ठंडी बूँदे
जम जाए शबनम बूँदे
खूब होती है बर्फबारी
होती ठंड की सरदारी
हिम की श्वेत सी चादर
ढक दे वो सफेद चादर
ले लेती है निज आगोश
जमी हुई वो धवल ओस
नहीं रहता कुछ होश
हो जाते हैं सभी खामोश
तनबदन रहे है कांपता
जब सूखा पाला है पड़ता
पशु पक्षी हो या कोई जीव
ठंड में ठिठुरते हों निर्जीव
गली चबूतरे घर दहलीज
हो जाते सभी के सभी सीज़
गुड़ रेवड़ी से मुंह रहे चलता
कहें पाला कम है लगता
ठंडी चलती है खूब समीर
ठंडा होता पीने का नीर
संध्या हो या सुबह- भोर
गर्म कपड़ों का चले दौर
सी सी करते,कांपते-कंपते
काम-धंधे भी करने पड़ते
सुखविंद्र कहे सर्दी पड़े रोज
पर खाने-पीने की रहे मौज
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली ( कैथल)