सर्दियों का है मिजाज़
सर्दियों का है मिजाज
मौसम की रंगत सर्दियों का है मिजाज।
घनघोर है कोहरा प्रकति का है लिबास।
देख तेरा बदलता ,आसमान का नजारा।
लग गई जोरो से ठिठुरन,मानुष बेचारा।
उड़ने लगी परिंदे आसमान में,
मछली तैरने लगी समुद्र तल में।
नभ की पक्षी ,जल की रानी,
नहीं लगती ठंड इनको सारी।
चलने लगी है हवाएं,सागर भी लहराए।
बागों में खिली फूल,देखकर मन भाए।
बढ़ती रातों की ठंड तनबदन कसमसाए।
सुबह की जलती अंगेठिया दिल गुदगुदाए।
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रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार (छ. ग.)
8120587822