सर्जन और संहार चले हैं साथ साथ……
सर्जन और संहार चले हैं साथ साथ
हैं बड़ी ही जटिल बात
पर.. येतो हैं सच्चाई…!
बड़ा जीव खाता छोटे जीव को,
ऐसे ही होता हैं विसर्जन…!
अगर… न होता ऐसा तो सोचो क्या होता…?
दुःख..दर्द.. पीड़ा.. वेदना.. व्यथा और…
विषमयता जरूर होती हैं… और…
करे हैं हाल बुरा हमारा…!..!
सोचा भी न हो कभी और…
अचानक से बने जो… कोई दुर्घटना…
आश्चर्य और विवशता से भर जाता ह्रदय हमारा..!
पर….फिर भी परिवर्तन
ऐ तो मुख्य उदेश्य हैं सृष्टि का,
उससे ही होता हैं नवसर्जन….!!!!