सरोकार
जंगल छोड़ जो समाज पनपा था उसे कहाँ पहुंचा दिया है,
देखते ही देखते समाज को वापिस जंगल बना दिया है।
राजनीति में आज नैतिक मूल्यों के माने ही खो गए हैं,
धर्मनिरपेक्ष के सामने खड़े शर्मनिपेक्ष हो गए हैं।
यह दौर अनैतिकता के ऐसे बीज बो गया है,
कि पतन अपनी सीमा छोड़ असीम हो गया है।
मानवता की गहराई खत्म हो गई आज इंसान में,
अंतर है ज्ञान के अहंकार और अहंकार के ज्ञान में।
ज्ञान का अहंकार तो इस कदर चढ़ गया है,
अहंकार का ज्ञान नहीं कि कितना बढ़ गया है।
आज भाईचारे में इस कदर जहर भर दिया है,
राजनीति में सामाजिक सरोकार ही खत्म कर दिया है।