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13 Jul 2024 · 1 min read

सरिता

वो सरिता फिर पावस में बहने लगी है,
किस्से वो हँसकर के कहने लगी है…

सूखे हुए आँचल में आस ही बची थी,
आज पा के फुहार देखो सजने लगी है…

रेत कंकड़ थे बंजर कोई जीवन न था,
देख गोदी में चेतन वो हँसने लगी है…

बहती कछारों से कितने ही घाटों से,
करती हुई वो कल-कल बढ़ने लगी है…

तप्त कितना था नभ आज शीतल हुआ,
संग मेघों के सपने वो बुनने लगी है….

©विवेक’वारिद’*

Language: Hindi
42 Views
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