सरिता
” सरिता ”
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हाँ !
मैं ही तो हूँ !
सतत् तरंगित और
नि: शब्द-सी प्रवाहित
सरिता |
शीतल जल-सा…….
‘स्नेह’ प्रवाहित होता है
निर्मल अनुभूति के साथ
मेरे अंतस में ||
मेरे नीर में भी….
ममता !
स्नेह !
समर्पण !
त्याग !
निष्ठा !
कर्तव्य !
और विश्वास
तैरते रहते हैं ……
प्लवक बनकर
और समृद्ध करते हैं
मेरी थाति को ||
वह थाति !!
जो बनाती है मुझे !
नारी !
सृजना !
और अन्नपूर्णा ||
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डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”