सरिता है आभास
पत्थर पत्थर लिख रहा,
पानी का इतिहास l
नदियाँ पर्वत से उतर,
देती यह विश्वास…. ॥
प्रेम सभी के हृदय में,
सूखा कोई सिक्त ।
द्रवित कहीं होता अधिक,
रहता कोई रिक्त ॥
इस पर निर्भर भावना,
खुश या रहे उदास …।
सिंचित मानस को करे,
कर्म – धरा को बाँट I
नर क्षमता के हाथ से ,
लेता उसको छाँट ॥
फल की फसलें खोलती,
भौतिक भरा विकास … I
जीवन में बनते सदा,
वृक्ष प्राण के सेतु ।
पत्थर पानी मध्य में,
जो मिट्टी के हेतु ॥
पंच भूत की वाहिनी,
सरिता है आभास ..।
मन को देती प्रेरणा,
जन को देती सीख ।
बहो निरन्तर अन्त तक,
दो माँगों नहि भीख ॥
हृदय प्रवाहित सभी का,
दूर रखो या पास… I