सरिता सी जिन्दगी
सरिता सी होती जिन्दगी जो बहती रहती है
उफान पर बहती है कभी तल पर बहती है
पहाड़ो से निकलती है मैदानों में फसती है
जिन्दगी भी तो ऐसे ही निकलती फसती हैं
दरिया सी है जिन्दगी कई मोड़ों पर.मुड़ती है
कहीं चौड़ी होती है कहीं पर संकीर्ण होती है
निर्झरिणी की भान्ति जीवन सूख भी जाता है
बादल खुशी बन बरसता है वो सूखा मिटता है
रजवती जब घिरे तूफानों से तबाही मचाती हैं
तूफानों से घिरी जिन्दगी त्राहि त्राहि मचाती है
सूनसान राहों पर नदियों की गहराई नहीं मपती
जिन्दगी भी गर सूनी हो तो तन्हाई नहीं है नपती
तरंगिणी तेज बहाव में सब कुछ बहा ले जाती है
जिन्दगी समय वेग के साथ जमाने को उड़ाती है
शैवालिनी धारा प्रवाह शान्त शालीन होता है
जीवन सभी प्रेम रंगों से रंगलीन हसीन होता है
सरिता सी होती जिन्दगी जो बहती रहती है
उफान पर बहती है कभी तल पर बहती है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत