“सराय का मुसाफिर”
तेरी मोहब्बत न जीने देती , न मरने देती है मुझको,
तेरी बेपनाह चाहत तड़पने भी नहीं देती है मुझको ,
सराय का एक मुसाफिर हूँ एक दिन अपने घर जाना पड़ेगा ,
नदी का बहता पानी हूँ एक दिन समंदर में समाना ही पड़ेगा,
तुमने क्या कमाया परदेश में उसका हिसाब बताना पड़ेगा ?
मजलूमों पर कितने सितम ढाए उसको बतलाना ही पड़ेगा ?
तेरी मोहब्बत न जीने देती , न मरने देती है मुझको,
“होश” गवां बैठा तेरी यादें सोने भी नहीं देती मुझको,
रेत के सराय में रहते हुए, अपना पक्का ठिकाना बना लिया,
इमारत में हमने धोखा,झूठ,फरेब का ईट-पत्थर लगा लिया,
दौलत के चंगुल में नशे को अपना एक साझीदार बना लिया,
मासूम कलियों में डूबकर उनको अपना राजदार बना लिया,
तेरी मोहब्बत न जीने देती , न मरने देती है मुझको,
भूल गया हूँ “ अंतिम सच ” कि जाना कहाँ है मुझको,
दिल की आरजू है तेरे दर का दीदार करके “जहाँ” से गुजरूं,
जहां-२ से गुजरूं तेरी तस्वीर को सीने में छिपाकर निकलूं,
“राज” तेरी बेपनाह हसीन मोहब्बत में जन्मों तक फिसलूं,
तेरा खूबसूरत नाम अपने माथे पर लिखकर जहाँ से गुजरूं,
तेरी मोहब्बत न जीने और न मरने देती है मुझको,
तेरी बेपनाह चाहत तड़पने भी नहीं देती मुझको ,
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देशराज “राज”