सरहद
विहग पवन स्वच्छंद है, और नदी की धार ।
खींच लिये खुद ही मनुज,सरहद की दीवार।। १
सरहद पर दिन रात यूँ , क्यों होता है खून।
छुप जाती इंसानियत, बाँकी रहें जुनून।। २
सीमा पर डट कर खड़े, रहते वीर जवान।
मातृभूमि के वास्ते, हो जाते कुर्बान।।३
सरहद जिसका घर बना, जंग बना त्योहार।
मिट्टी का माथे तिलक,करे शत्रु संहार।। ४
सरहद पर तैनात है,खोया अपना चैन ।
नींद त्याग कर जागते, सैनिक सारी रैन।। ५
सीमा का प्रहरी रहा,बना देश की शान।
जिसका फौलादी जिगर,सीना है चट्टान।। ६
रहते सरहद पर अडिग, बना देश का ढ़ाल।
देश भक्त सच्चा वही, भारत माँ का लाल।। ७
विरह व्यथा में तप रही, कर सोलह श्रृंगार।
सजल नयन में नीर है,प्रीतम सरहद पार।। ८
सरहद के हर वीर को,माँ देती आशीष।
देश-भक्ति के वास्ते,सदा कटाना शीश।। ९
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली