सरहद से वादा!
शीर्षक – सरहद से वादा!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
मो. 9001321438
मैं आया हूँ करके सरहद से वादा!
कटे शीश न सरकेगी हद सरहद।
हिम-ताज गर्वित मातृशीश पर,
शपथ मात रक्त हर कतरे की
झुकेगा न उत्तुंग हिम-ताज कद।
मैं आया हूँ करके सरहद से वादा!
शत्रु हिम घाटी भौंह तान खड़ा
रक्तरंजित करने ध्वल-वसन मात!
हिन्द रग-रग रक्त उबाल पड़ा
खड़े भारती हद रौद्र रक्त रण चक्षु।
मैं आया हूँ करके सरहद से वादा!
न्योछावर प्राण प्रण-पथ पर
शपथ आँचल के अमृत की
सिंदूर शोभित गर्वित भाल की
हिम पार लाल सिंहासन डोलेगा।
मैं आया हूँ करके सरहद से वादा!
होगा प्रचण्ड रण मार्त्तण्ड सा तेज
होंगे भस्मसात भूधर भुज ओज
दहकेगी अग्निशिखा पुंज तेज
चमू चक्षु चमकेगी रौद्ररूप रण रोज।