सरहद से आती आवाज
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मत हो उदास मेरे भाई,मत भर कोरों में पानी।
लहू में उत्ताल तरँगें, नस में है अमिट जवानी।
सिर लाल कफन से बाँधा,सीमा पर दागा गोली।
मैं हुआ शहीद वतन हित,उठ चली हमारी डोली।
आँधी हो या हो तूफाँ’; नदी की उत्ताल तरँगें।
रुकती नहीं बढ़ती जाती – वीरों की अमर उमँगें।
मरते-मरते चिल्लाना-“यह लीक न मिटने देना।
मर जाना या मिट जाना,धरती अपनी ही रखना।“
लड़ मरो देश के मुस्लिम,सब सिख,ईशाई,हिन्दु।
सीमा पर अरि के पद चिन्ह क्या! नहीं रहें भी विन्दु।
तुम अमर देश के वासी मिट-मिटकर बन जाता जो।
है काल पास ही मेरे, लो बढ़ो तिरँगा थामो।
बलिदान देश हित तेरा,अवशेष चिन्ह जीवन का।
कल का गुरू तू,पूजा तू,मन्दिर सम्पूर्ण वतन का।
तुझको आशीष जवानो, युग-युग के हे बलिदानी!
मत हो उदास मेरे भाई,मत भर आँखों में पानी।
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