सरहद पर ख़ुशियाँ उतरें अब डोली में
भर दो खुशियाँ इक गरीब की झोली में.
खेलो कभी-कभी बच्चों की टोली में,
छोटी-छोटी खुशी मिलेगी तुमको ज्यों,
ढूँढ़ें बच्चे खुशियाँ आँख-मिचोली में.
किसको मिली खुशी है झगड़ों-टंटों से,
मिल जाती खुशियाँ इक मीठी बोली में.
कुछ खुशियाँ अनमोल मिलें यदि मानो तो,
गले मिलें जब ईद-दिवाली-होली में.
मानवता का यही तकाजा है ‘आकुल’,
सरहद पर खुशियाँ उतरें अब डोली में.