सरहद पर जांबाज़
सबको अपनी ही पड़ी,
आम कहे या खास !
लाठी मिलकर साँप से,
रचा रही है रास !!
सरहद पर जांबाज़ जब,
जागे सारी रात !
सो पाते हम चैन से,
रह अपनों के साथ !!
✍ सत्यवान सौरभ
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