*”सरहदें पार रहता यार है**
“सरहदें पार रहता यार है*
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सरहदें पार रहता यार है,
क्या करें हम अधूरा प्यार है।
सोचता हूँ मै ख्यालों में सदा,
हो न पाए कभी दीदार है।
रात दिन याद आती है हमें,
छोर सूनान् बहुत संसार है।
ना किनारा न साहिल हैँ कहीं,
नाव अटकी सदा मँझधार है।
देख लो यार मनसीरत खफ़ा,
खूब झूठा लगे किरदार है।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)