सरस्वती वंदना
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शांत-सजल -शीतल-सरल, ज्ञान दायिनी मात।
वर दे माँ पाये तुझे, भजे तुझे दिन-रात।। १
साहस, संयम, विमल मति, उर में भर दो ज्ञान।
हे माँ हमको शक्ति दो, दो शील स्वाभिमान।। २
निर्विकार लिखते रहें, दे दो यह वरदान।
सदा शक्ति सामर्थ्य से, रचे दिव्य अभिधान।। ३
हे वाणी वरदायिनी, विनय करूँ कर जोड़।
नवल शब्द नव भाव दे,नवरस करे निचोड़ ।। ४
माँ वरदा वरदायिनी, विमल विश्व विस्तार।
वाणी वीणा वादिनी, विदुषी वेद प्रचार।। ५
माँ सरस्वती शारदे, सुभग साज श्रृंगार।
सहज-सरल सुरमोदिनी, स्वर सरिता सुख सार।। ६
सदगुण वैभव शालिनी, माँगू हाथ पसार।
नित नूतन कविता रचे, बढ़े कलम की धार।। ७
माँ सरस्वती भगवती, तुमको रही निहार।
हंस लता सुरमोदिनी, देना शुद्ध विचार।। द
धवल कमल शुभ आसनी, सकल सुखों के सार।
भटक रही हूँ शून्य में, कर दो भव से पार।। ९
हे भव तारक भारती, विनती बारंबार।
धूप, दीप, फल आरती, मात करो स्वीकार।। १ ०
शोभित वीणा कर कमल, शीश मुकुट गल माल।
नवल भाव उर में भरो, माँ कर नित्य निहाल।।१ १
? ? ? ? —लक्ष्मी सिंह ? ☺