सरस्वती
सात सुरों की धारिणी , दे दो माँ वरदान
किरपा होये आपकी , पाये नर तब ज्ञान
मात मुझे तुम बना लो , अपनी वीणा तार
बैठ आप की शरण में , पाऊँ सुर का सार
श्वेत वर्ण धारिणी माँ , अपना सा दो रूप
तन के क्लेश दूर हो , ऐसा दो स्वरूप
पदमासन माँ हमें दो , काव्य का वरदान
सदा लिखे सच लेखनी ,ऐसी दे दो आन
तुम हो चतु दिशि व्याप्त, तुमसे नीलाकाश
दीप्त तुमसे चराचर, तुमसे जग प्रकाश