सरस्वती वंदना
हे हंस वाहिनी बुद्धि दायिनी
स्वर अमृत भरदे
मईया स्वर अमृत भरदे।
ज्ञान हीन अज्ञानी माता
आये शरण तिहारे
कर कृपा मुझ दास पर
जीवन धन्य हो जाये
स्वर कोकील सा करदे मईया
राग रंग भरदे
मईया स्वर अमृत कर दे।
त्याग तपस्या का वर दे
बढे पुण्य प्रताप हमारा
तुझ बीन कौन सहारा मईया
बालक हूँ मै तिहारा
राग द्वेश का नाश करो
अनुराग दया भरदे
मईया स्वर अमृत करदे।
®©पं.संजीव शुक्ल “सचिन”