सरस्वती वंदना-6
गीतिका
मिला उसे वरदान,शरण जो माँ की आया।
दूर हुआ अज्ञान,तमस की कलुषित छाया।।1
करे साधना सतत,शब्द यति लय छंदों की,
बनता रचनाकार,गीत यदि माँ का गाया।2
त्याग अहम का भाव,समर्पित करके सब कुछ,
काव्य सृजन का ज्ञान,तभी है सबने पाया।3
गिरी भीत की भित्ति,समाया जग का साहस,
लिखकर सच्ची बात,नाम नित खूब कमाया।4
माँ की अनुपम कृपा,मिले हो भावोद्वेलन,
अनायास ही युग्म,भाव से गया सजाया।5
बही अश्रु की धार,हुआ मन गदगद देखो,
आई हंस सवार ,कृपा कर प्यार लुटाया।6
उड़ती मादक गंध,महक से पूरित है मन,
बिपिन शब्द कचनार,देखकर मन हर्षाया।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय