सरस्वती वंदना-4
गीतिका
हंसवाहिनी के चरणों में,जो भी शीश झुकायेगा।
भक्ति भाव श्रद्धा से वह ही,कृपा मातु की पायेगा।।1
भाव प्रवाहित कल कल छल छल,माँ ही उर में करती हैं,
बिना मातु की कृपा सोच ले,कैसे कलम चलायेगा ।2
सुभग विचारों की सरिता का,स्रोत शारदा माता हैं,
वरदहस्त उनका सिर होगा,तभी गीत तू गायेगा।3
यति गति नव लय ताल छंद को,जन्म दिया है माता ने,
बिना वंदना के माता की,कैसे उन्हें कमायेगा।4
पाल दर्प का सर्प कभी भी,चलना ठीक नहीं समझे,
रूठ गईं यदि मातु शारदा, फिर पीछे पछताएगा।5
करें समर्पित लेखन सारा,नित प्रति माँ के चरणों में,
माँ ने चाहा तो लेखन में,नित निखार फिर आयेगा।6
गीत गज़ल कुछ भी लिखना हो,लिखो प्रेम की भाषा में,
बाँट लिए दुख दर्द जगत के, तो तू नाम कमायेगा।7
डाॅ. बिपिन पाण्डेय