सरस्वती वंदना
ग़ज़ल
शारदे को नमन नित्य करता रहूँ।
नाम उनका सदा मन में रटता रहूँ।
भाव के पुष्प अर्पित करूँ मैं सदा-
भक्ति का दीप बनकर ही जलता रहूँ।
दूर हो तम हृदय का ये आशीष दो-
सत्य के मार्ग पर ही मैं चलता रहूँ।
नाश अज्ञान का माँ तू कर दे अभी-
ज्ञान-गंगा की धारा में बहता रहूँ।
माँ की महिमा जगत में है “कृष्णा” बड़ी-
लेखनी से यही बस मैं लिखता रहूँ।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश