सरस्वती वंदना /
माँ ! मेरे निर्धन होंठों को,
शब्दों का धनवान बना दे।
खट्टी , कड़वी है ये जिव्हा,
इसको रस की खान बना दे ।।
स्वर अनुगुंजित हों वीणा के,
मन का ऐंसा मान बना दे।
नसों धमनियों और शिरा को,
तानसेन की तान बना दे ।।
आँखों, कानों और नाक की,
आन-बान और शान बना दे ।
मेरे गाँव की, मेरे देश की,
जग में नई पहचान बना दे ।।
– ईश्वर दयाल गोस्वामी