सरस्वती वंदना
रूपमाला छन्द
★★★★★★★★
हे भवानी! भारती! मुझ पर करो उपकार।
हाथ जोड़े हूँ खड़ी कर लो नमन स्वीकार।
दीप आशा की जलाये आ गई हूँ द्वार।
हर दिवस लिखती रहूँ अंतस भरो उद्गार।
हो सबल नित लेखनी दो ज्ञान का भंडार।
कोष शब्दों के भरो, हो लेखनी में धार।
हो नवल रसना सरस स्वर सत्य का संचार।
हे भवानी! भारती! मुझ पर करो उपकार।
काव्य की अभिधा बनो माँ! शक्ति का आधार।
लक्षणा नव व्यंजना दो शिल्प का व्यवहार।
छंद ,गति, लय,ताल सुर पर हो सबल अधिकार।
नित सृजन करती रहूँ साहित्य ले आकार।
लेखनी चलती रहे मधुरस बहे संसार।
हे भवानी!भारती! मुझ पर करो उपकार।
माँ! मुझे अपना बना ले कर रही मनुहार।
हाथ माथे पर रखो,आशीष का दो हार।
स्वप्न जो देखें सभी माता करो साकार।
अंबिका! तम को हटा मन में भरो उजियार।
सूर्य सा चमकूँ सदा दे दो अचल आधार।
हे भवानी !भारती! मुझ पर करो उपकार।
रत्न सा यह रूप माला ले लिया आकार।
शब्द सुमनों को पिरोई तब किया श्रृंगार।
मात !ने हृद से लगा कर दे दिया है प्यार।
नित दिवस करती रहूँ मैं मात की जयकार।
माँ! कृपा करना सदा हो आपका आभार।
हे भवानी!भारती! मुझ पर करो उपकार।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली