सरसी छंद
छंद- सरसी
मात्रा-१६ ११ अंत-२१
मनमोहन मनभावन मोहन,राधा वल्लभ श्याम।
काले-कुंतल मोर मुकुट सिर,रूप नैन अभिराम।।
कटि पीतांबर मुख मुरलिया
आभा ललित ललाम।
रास रचाते कृष्ण कन्हैया,कमल नैन घन-श्याम।।
बंसी वट यमुना के तट पर,
घेर लिए चितचोर।
भर पिचकारी कान्हा मारी,
हुई खूब बरजोर।।
श्यामल रूप सलोना सोमिल,
बँधी प्रीत की डोर।
अपलक रूप निहारूँ केशव,
पुलकित मनवा मोर।।
नीलम शर्मा ✍️