सरसी छंद
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सरसी छंद
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दुर्गम पथ अंजान डगर है, संग न कोई मीत ।
लक्ष्य दूर है चलते जाना, गाते-गाते गीत ।।
मंजिल उनको ही मिलती है, जो करते हैं कर्म ।
थक जाये राही कितना भी, चलना उसका धर्म ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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