सरसी छंद
सरसी छंद
सूरज से आग बरसता है ,तड़प रहे सब आज ।
मन विचलित सबका है देखो ,नहीं हो रहा काज ।
विहग वृंद अरु सभी व्याकुल ,खोज रहे हैं नीर ।
कटते उपवन उजड़े कानन , होती है अति पीर।
__चारुमित्रा
अर्थ
सरसी छंद भी मात्रिक छंद का एक भेद है। इसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएं होती हैं और 16 -11 मात्रा पर यति होती है । अंत में एक गुरु और एक लघु आता है ।