सरसी छंद
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(सरसी छंद- 27 मात्रा, 16-11 पर यति, चरणांत गाल ।)
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माटी से तन बना रह नित, अद्भुत बड़ा कुम्हार ।
एक दिवस माटी में मिलता, छोड़े सब संसार ।।
नहीं एक सा रूप किसी का, नहीं एक सा रंग ।
देख कलाकारी को तेरी, मैं हूँ भगवन दंग ।।
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माटी की मटकी है काया, नहीं रहा यह ध्यान ।
माया में मन भटक गया है, भूल गया सत ज्ञान ।।
रे कुम्हार ! तू ऐसी गढ़ना, मटकी अबकी बार ।
छलके उस गगरी के जल से , बस तेरा ही प्यार ।।
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कभी न माँ को पीड़ा देना, माँ जीवन आधार ।
पाला-पोसा आँचल में ढक , अनुपम दिया दुलार ।।
कर्ज दूध का उतर न पाये, चुका न पाते ब्याज ।
राजा बेटा कह पहनाती, माता अद्भुत ताज ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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