सरसी छंद
सरसी छंद 16/11
शृंगार-संयोग
सृजन पंक्ति-जटा सर्प की माला से मैं।
मैं गौरी वो गौरी शंकर,जन्म जन्म का साथ।
जटा सर्प की माला से मैं, पूजूँ भोले नाथ।।
देख तपस्या को मैं मोहित, जागा मन अनुराग।
आँखे खोलो भगवन देखो, खुल जाएंगे भाग।।
प्रणय वंदना भोले सुनना, पकड़ो मेरा हाथ।
जटा सर्प की माला से मैं, पूजूँ भोले नाथ।।
तन से सर्पो को लिपटा देखूं,, आये मुझको लाज।
नागिन सी बल खाती जाती, बीन बजे उर आज।।
शांत हृदय की कब हो ज्वाला, चरण लगाती माथ।
जटा सर्प की माला से मैं, पूजूँ भोले नाथ।।
प्रेम तेरे की मैं तो जोगन, आयी हूँ कैलाश ।
हरदम चाहूँ स्वामी तेरी, बाहों का बस पाश ।।
जब जब भोले तुम्हें निहारूँ, मनवा करता गाथ।
जटा सर्प की माला से मैं, पूजूँ भोले नाथ।।
प्यार भस्म से मन है रंगा, बेल पत्र सा गात,
तुम्हें समर्पित हो मैं जायूँ,मिले प्रेम की दात।
मधुर मिलन की आयी बेला,भीगें अमृत पाथ ।।
जटा सर्प की माला से मैं, पूजूँ भोले नाथ।।
सीमा शर्मा ‘अंशू’