सरल के सेर
कोई नहीं अपना यहाँ मैंने तब जाना सरल
जब दूसरों के खातिर जिंदगी गुजार दी
जब मौत आई मेरी तब वो भी थे रोये सरल
जिसने जिन्दगी में कभी हाल भी पूछा नहीं
कौन जाने किस घडी में ख़त्म हो जाऊ सरल
जब तलक जिन्दा है सब को खुश करता तू चल
जिन्दगी के सफ़र में है फूल भी कांटे भी है
कौन जाने कब सरल काँटों पे सोना पड़े
आफ़ताब में चाँद यु चमकता तो नहीं
दिन भर तपता है तभी शाम को आता नजर