सरल की घनाक्षरियाँ
घनाक्षरी
1
बैठाता गोटी पे गोटी, चाहिये तुझे तो रोटी
कामी क्रोधी लालची को, चेतना धिक्कारती।।
गरीबों को हीरा मोती, आशाएं नहीं ही होती
फ़टे फूटे कटे पिटे, गरीबी स्वीकारती।।
जागो जागो सोओ नहीं, दौड़ते चले ही चलो।
जागो जागो जागो तुम्हे, मंजिल पुकारती।।
रीति नीति प्रीति क्षेम, धीरज धरम नेम
धारिये जहां में तो ही, बानगी निहारती।।
2
झूठे हैं इरादे वादे, पूरे नहीं किये जाते,
मत उलझाइयेगा, अच्छे दिन कहां हैं।।
महंगाई सर पर चढ़ कर बोलती है,
पता तो लगाइएगा, अच्छे दिन कहां हैं।।
गोली मारते हो अन्नदाताओं को तुम तो
हमको दिखाइयेगा, अच्छे दिन कहां हैं।।
ए टू जेड आपके ही देश में प्रणेता नेता
फिर भी बताइयेगा अच्छे दिन कहां हैं।।
3
घनाक्षरी छंद
पढ़ाई लिखाई दूध शेरनी का मान कर,
पढ़ाई लिखाई की ही कहो दरकार हो।।
शब्द से ही ज्ञान बने, ज्ञान से विज्ञान बने,
शब्द सत्य शिव बने, शब्द शब्द सार हो।।
विधि को विधान को ही, माने संविधान को ही,
जन गण मन तब, जागे सरकार हो।
लोगों का ही लोगों द्वारा लोगों के लिये ही रहे,
प्रजातंत्र में तो जनता की जयकार हो।।
4
मित्रता
मित्रता प्रगाढ़ता से होनेवाला भाव हुआ,
जानिये न तुम इसे, मामला है हालिया।।
मित्रता से जिंदगी है मित्रता से बन्दगी है,
मित्र मान वरदान भगवान ने दिया।।
भेदभाव ऊंचनीच, जाति दम्भ छोड़कर,
मित्रता किया ही नहीं, तो क्या मित्रता किया।।
मित्रता करो तो जैसे कृष्ण ने सुदामा से की,
दीनहीन मित्र को भी, गले से लगा लिया।
बिदाई की मनहरण
1
एक परिवार जैसे,
रहते थे लोग सभी,
पर नियति को यही
नहीं मंजूर है।।
होता था ये, होता है ये,
होता भी रहेगा यही
इसीलिये हम अभी,
सभी मजबूर है।।
जहाँ भी रहोगे आप,
मिलते रहेंगे हम,
आप हो हमारे यह
हमको गुरूर है।।
दिल से दिलों की दूरी,
नहीं कभी भी है रही,
आगे भी ये दिली दूरी
रहे नहीं दूर है।।
2
आपने जो काम किया,
पाया भी मुकाम है
आप की ही बात चली,
अजी चहुंओर है।।
राजनेता साठ साल
के ही बाद होते बड़े,
भाव कहीं आये नहीं
हुए कमजोर है।।
आपकी बिदाई लगे,
लम्बी जुदाई लगे,
दिल कहे मत जाओ,
रुको यहाँ और है।।
सदियों जमाना सदा
याद करेगा ही तुम्हें,
चाहना हमारी बनो,
आप सिरमौर है।।
3
लम्बी उम्र आपकी हो,
दीर्घ आयु आप रहे,
कामना हमारी जियो,
शतक नाबाद है।।
नाती पोती संती देखे,
खुशी के नगाड़े बजे,
स्वस्थ रहे मस्त रहे,
रहना आबाद है।।
हम भी तुम्हारे ही है,
भूलना कभी भी नहीं,
प्यार दिया आपने
जो सदा रहे याद है।।
जाने अनजाने कोई,
भूल हमसे भी हुई,
माफ करो कभी हुआ,
वाद प्रतिवाद है।।
रूपहरण घनाक्षरी
1.
सुनना जरूरी भी है
सुनो गुनो फिर बुनो
नहीं कहो बातें तेरी
हमें नहीं है कबूल।।
देश में निवास है तो
देश का निवासी है वो
जातिपाति धरम की
बातें करो न फिजूल।।
सच्चा राष्ट्रभक्त बन
जन जन गण मन
वसुधैव कुटुंब का
पालो सदा ही उसूल।।
जानते नहीं हो तुम
जानना जरूरी तुम्हे
आम पाओ कहां जब
बोते सदा ही बबूल।।
2.
मन में मगन सब
अपने ही आप में है,
कोई नहीं किसी की भी
सुनने को है तैयार।।
चिल्लापों में सभी लगे
हुए मानों आजकल
इसीलिये नहीं कोई
सुनता भी है पुकार।।
सही या तो नहीं सही
सही कोई कहे नहीं
उल्टे वाले खड़े सीधे
होने लगी जै जै कार।।
लीपापोती भर होती
होती नहीं सही बात
त्राहि त्राहि चारों ओर
होने लगी हाहाकार।।
-साहेबलाल दशरिये ‘सरल’