सरकार बदल दअ
कह दअ जाके सरकार से
तू यूपी औरी बिहार के
दया नाहीं, अधिकार चाहीं
भीख नाहीं, रोजगार चाहीं।
(१)
जाति-धरम के झगड़ा में
भाषा-प्रांत के रगड़ा में
कबले उलझल रहल जाई
झूठ-मुठ के लफड़ा में?
तनी जोर से ललकार के
कह दअ जाके सरकार से
दया नहीं, अधिकार चाहीं
भीख नाहीं, रोजगार चाहीं!
(२)
ना मंदिर-ना मस्जिद
ना गिरजा-ना गुरूद्वारा
चाहीं हमके तीन सामान
रोटी, कपड़ा औरी मकान।
फटकार के-धिक्कार के
कह दअ जाके सरकार से
दया नहीं, अधिकार चाहीं
भीख नाहीं, रोजगार चाहीं।
(३)
मचल बा कइसन हाहाकार
कहीं हत्या-कहीं बलात्कार
बढते जाता-दिन पर दिन
चारू ओर केतना-भ्रष्टाचार।
कब मुक्ति मिली हो अत्याचार से
पूछअ जाके सरकार से
दया नाहीं, अधिकार चाहीं
भीख नाहीं, रोजगार चाहीं।
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Shekhar Chandra Mitra
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