सरकारी नौकर
मेरी तो समझ से बाहर सारा मसला है
क्यों दुनिया सरकारी नौकरी की दीवानी है ?
क्या और कैसे बताऊं तुम्हें मैं आज
सरकारी नौकर की अजीब कहानी है,
लगभग 5 साल से मैं भी हूं इसी सेवा में
जानकारों को लगता रोमांचित किस्सा हमारा है
कैसे वर्णन करूं हमारी व्यथा और मजबूरी को
ना ही शाम हमारी, ना ही दिन हमारा है,
एक दिन के ऑफिस का क़िस्सा सुनाऊं
दैनिक दिनचर्या का काम चल रहा था
उस दिन सुबह सुबह एक कस्टमर आया
कैसें हैं आप सब उसने स्टॉफ से पूछा था,
बैठा था शायद वह जवाब के इंतजार में
सारा स्टाफ देख रहा उसको टकटकी लगाए
सबसे बुजुर्ग हमारे साथी ने अनायास ही बोला
वैसे ही तो हैं जैसा कल छोड़ कर आप गए,
कल शाम को तो आप ऑफिस आए ही थे
आपके जाने के बाद हम भी अपने घर गए
क्षण भंगुर अंधेरी रात को थोड़ी सी नींद ली
नहाए धोए खाना खाकर सुबह वापिस आ गए,
तब कस्टमर तो हंसकर चला गया, लेकिन
अनगिनत प्रश्न मेरे अंतः पटल पर छोड़ गया
बिलकुल सही तो है यह विडंबना भी
हमारा समय भी तो नौकरी में बह गया,
साठ वर्ष तक नौकरी में अपनी सेवा देते
सुबह से शाम नियत समय में बंध जाते
चाह कर भी परिवार के साथ कैसे रहे ?
अधिकारी अवकाश अस्वीकृत कर जाते,
या तो करो जी हुजूरी उच्चाधिकारियों की
नहीं तो अलग थलग हम फेंके जाते
नियमों में जो करें हम अपनी ड्यूटी
घमंडी होने का हम पर ठप्पा लगा देते,
शादी ब्याह में भी हमें नहीं मिलती छुट्टी
बस खड़े खड़े हाज़िरी हम वहां लगाते
आखें फाड़कर इतवार का इंतजार करते
विधानसभा के बहाने कभी थावर को बुलाते,
अगर नहीं होते फर्जीवाड़े में शामिल तो
अनुशासनात्मक कार्यवाही का भय दिखाते
सही होते हुए भी लड़ाई लड़नी पड़ती
अरे हम तो हंसकर चार्ज शीट भी झेल जाते,
सैलरी नहीं मिलती कभी समय पर हमें तो
कभी दिवाली बोनस खातिर हड़ताल करवाते
जो मिला उसमें संतुष्टि हम रख कर
सेवानिवर्ती पर अपना झोंपड़ा बना पाते,
एक बार तो सेवानिवर्ती की खुशी होती
बाद में लेकिन हम मतलब समझ पाते
संपूर्ण जीवन तो ऑफिस में लगा दिया
बीते समय को कैसे हम वापिस बुलाते ?
परिवार के लिए अब कितना सा समय बचा
बच्चों का बचपना भी नहीं देख पाते
जीवन तो आया खत्म होने की कगार पर
कैसे अब हम खुद को बहला पाते ?
सेवानिवर्ती के बाद की है अलग ही स्थिति
कैसे अपने आप को हम समझा पाते ?
मृत्यु शैय्या दिखती फिर सपने में भी
सोच यमराज के बारे में हम तो डर जाते।
Dr.Meenu Poonia jaipur