सरकारी नौकरी वाली स्नेहलता
“सरकारी नौकरी वाली स्नेहलता”
राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले में एक सरकारी दफ्तर का नजारा है। दफ्तर में बहुत सारे कर्मचारी बैठे गप्पे मार रहे हैं। जैसा हमने किताबों में पढ़ा था कि सरकारी दफ्तरों में सुस्त सा माहौल जी हां बिलकुल वैसा ही माहौल यहां भी है। सारे के सारे कर्मचारी सुस्ताए बैठे हैं। कोई कुर्सी पर पैर रखकर बीड़ी पी रहा है तो कोई एक दूसरे की चुगली में व्यस्त है। सहसा ही दफ्तर में स्नेह लता प्रवेश करती है। स्नेहलता के साथ उसका पति और दो छोटे-छोटे बच्चे भी हैं।
वही चिर परिचित अंदाज में सारे दफ़्तर वाले आंखे फाड़ फाड़ कर स्नेहलता और उसके परिवार को घूर रहे थे, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा था। स्नेहलता ने अपने बच्चों को बिठाया तथा चपड़ासी से मुख्य अधिकारी का कमरा पूछकर आगे बढ़ गई। स्नेहलता की सरकारी नौकरी लगी थी तथा वह ज्वॉइन करने उस दफ़्तर में गई थी। पहला दिन था तो वह बिना कुछ बोले चुपचाप सारी बातें सुन रही थी। लगभग 5 घंटे इंतजार करवाने के बाद उसके दस्तावेज चैक किए गए तथा कुछ कमियां बताकर 3 दिन का समय देकर वापिस भेज दिया।
3 दिन बाद दोबारा स्नेहलता ने दस्तावेज चैक करवाकर ज्वॉइन कर लिया तथा अगले दिन से ड्यूटी पर आने लगी। वहां का मौहाल देखकर स्नेहलता का सिर दर्द करता था। ना तो कोई कर्मचारी समय पर दफ़्तर आता था और न ही ढंग से काम किया जाता था। सारा दिन गप्पे लड़ाकर टाइम पास करते रहते थे। सारा दिन नवल की चाय पीना उनकी आदत में शुमार था। जो कर्मचारी अनुपस्थित होता, हाजिर वाले सारे उसकी चुगली करते रहते थे। नए आने वाले कर्मचारियों को भी वो अपने में मिला लेते थे और अपने जैसा ही बना लेते थे।
जो उनके साथ बैठकर उनकी बातों में शामिल नहीं होता, सारे मिलकर उसको परेशान करना और ताने सुनाना शुरु कर देते थे। स्नेहलता को कम बोलना पसंद था तथा वह चाय भी नहीं पीती थी। इसलिए वह उनकी महफिल से सदा दूर ही रहती। उसी दफ़्तर में 3-4 और लड़कियां भी काम करती थी, जिनके नाम पूनम, अंजली, राधा और नीलम थे। वो सब की सब महफिल में बैठकर गप्पे लड़ाती थी। उनको नौकरी लगे समय तो कम ही हुआ था लेकिन पुराने वाले कर्मचारियों के साथ रहकर उनके ही जैसी हो गई थी।
जब कभी ज्यादातर पुरुष स्टाफ अवकाश पर होता तो वो लड़कियां स्नेहलता के साथ बातें करने की, अपनी महफिल में शामिल करने की कोशिश करती। स्नेहलता थोड़ी मुंह फट थी तो वह सीधा बोल देती कि मुझे चुगली करने का कोई शौक नहीं है, तो मेरे साथ ऐसी बातें मत किया करो। सारा स्टाफ बेवजह ही स्नेहलता से चिड़ने लगा था।
स्नेहलता समय पर ड्यूटी आती तथा चुपचाप अपने काम में लगी रहती। ज्यादातर स्टाफ शाम को लेट तक घर जाता था, लेकिन स्नेहलता दफ्तर का समय पूरा होते होते ही घर चली जाती थी। स्नेहलता को किताबें पढ़ने और साहित्य लेखन में रूची थी। वह पूरे दिन अपना काम करती रहती तथा खाली समय में अपनी पढ़ाई करती रहती।
सारा स्टाफ बेवजह ही स्नेहलता का विरोधी हो गया था। स्नेहलता की सीधे मूंह पर बोलने वाली आदत से सारे उसे घमंडी कहने लगे थे। मौका मिलते ही सारे मिलकर बड़े अधिकारियों से स्नेहलता की शिकायत करते थे। यह घर जल्दी चली जाती है, काम नहीं करती और भी ना जाने क्या क्या। उनकी शिकायत के बावजूद भी बड़े अधिकारी कुछ नहीं कह पाते थे क्योंकि स्नेहलता का काम हमेशा पूर्ण होता था तथा वह समय पर ऑफिस आती थी। उसकी कर्तव्यनिष्ठा से काम करने की शैली की वजह से उच्च अधिकारियों को कभी डांटने का मौका ही नहीं मिलता था। उसके विभाग ने हर साल विभागीय वार्षिक उत्सव होता था, जिसका नाम उन्होंने विभागीय खेल रखा हुआ था।
उनकी अपनी एक अलग ही परिपाटी थी कि वो इस उत्सव में लड़कियों को नहीं ले जाते थे। सिर्फ पुरुष कर्मचारी टीम बनाकर जाते, बिना खेल कूद में हिस्सा लिए मटर गस्ति करके वापिस आ जाते थे। इस बार स्नेहलता जिद्द करने लगी कि मै भी खेलों में जाऊंगी तो उच्च अधिकारियों के निर्देशों की पालना में सबको झुकना पड़ा। इस बार स्नेहलता खेल उत्सव से पदक जीतकर वापिस आई थी तो सब और ज्यादा ईर्ष्या करने लगे।
एक बार का किस्सा है, उसी दफ़्तर की महिला कर्मचारी नीलम गर्भवती थी तो डॉक्टर ने उसे फुल रेस्ट की सलाह दी थी। नीलम ने प्रशासन अधिकारी अरविंद शर्मा से अवकाश हेतु निवेदन किया। वैसे तो वहां हर लड़की के साथ सौतैला व्यवहार किया जाता था।
इसी के चलते नीलम को अवकाश स्वीकृत नहीं किया गया तथा वह नियमित रूप से ड्यूटी पर आती रही। लगातार बैठने के कारण नीलम को गर्भ के आठवें महीने में गर्भपात हो गया। कुछ दिन रो धोकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ गई, लेकिन विरोध करने की हिम्मत न कर सकी। इसी ऑफिस में महिला उत्पीडन शिकायत निवारण कमेटी भी बनी हुई थी, जो सिर्फ कागजों तक ही सीमित थी।
प्रशासन अधिकारी अरविंद शर्मा तो अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का नुकसान करने का आदी हो गया था तथा खुद को वहां का मालिक समझता था। इसी क्रम में एक बार राधा की सास की तबियत ज्यादा खराब हो गई तो उसने शर्मा जी फोन पर सूचना दी कि वह ऑफिस आने में असमर्थ है। शर्मा जी तो थे आदत से लाचार झट पट से बोले बिना अवकाश स्वीकृत करवाए अवकाश पर रही तो अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।
अरे ये क्या हुआ भी ऐसा ही 5 दिन बाद जब वह ड्यूटी पर आई तो उसके हाथ में सस्पैंड का पत्र थमा दिया था, जिसमे लिखा था कि बिना सूचना दिए अवकाश पर प्रस्थान करने के जुर्म में आपको सस्पैंड किया जाता है। लगभग 7 माह तक अधिकारियों के आगे हाथ जोड़कर, उनके दफ्तरों के चक्कर कटकर उसको दोबारा बहाल किया गया। इतने बड़े नुकसान के बाद भी राधा को उनकी टोली में बैठना ही पसंद था, और हो भी क्यों ना शर्मा जी का भय जंगल की आग की भांति फैला हुआ था।
ऐसे ही एक बार पूनम खंडेलवाल को अपनी पढ़ाई के लिए अन्नाप्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी, जिसके लिए उसने ऑफिस में निवेदन किया था। अपनी आदतों और दादाशाही के चलते उसको प्रमाण पत्र नहीं दिया गया। उस प्रमाण पत्र के ना मिलने की स्थिति में पूनम को भूत आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ा था। इसके विपरित लड़को को अनावश्यक छूट दी हुई थी। वो पुरे पुरे दिन ऑफिस नहीं आते तथा अगले दिन आकर दोनो दिन के हस्ताक्षर कर देते थे। ऑफिस ऑफिस ना होकर एक धर्मशाला बना हुआ था। सबको रिश्वत लेने, चुगली करने की आदत हो गई थी।
स्नेहलता अपने हक की लड़ाई लड़ती थी तथा लड़ झगड़कर अपने हक की मांग मनवा लेती थी। बाकी लड़कियों में लड़ाई लड़ने की हिम्मत तो थी नहीं उल्टा स्नेहलता से ईर्ष्या करती थी कि इसका सारा काम हो जाता है। ऐसे ही समय निकलता जा रहा था। लड़ाई झगड़ों के किस्से रोजाना का ही काम था। स्नेहलता के जिद्दी और कर्मठ स्वभाव के चलते सबको उसके सामने झुकना ही पड़ता था, लेकिन सभी उसे आजमाने और परेशान करने का मौका कभी नहीं छोड़ते थे तथा हर दूसरे दिन उच्च अधिकारियों के कान भरने से बाज नहीं आते थे।
स्नेहलता को नौकरी करते करते 5 साल हो गए थे। एक दिन उसके ट्रांसफर के आदेश जारी ही गए। शर्मा जी तो अपने आदत के मुताबिक रिलीव आदेश जारी नहीं कर रहा था। स्नेहलता ने 8 दिनों तक शर्मा जी को निवेदन किया कि आदेश जारी कर दो, लेकिन उसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
इसके बाद स्नेहलता के आदेश जारी हो गए लेकिन हाथ में नहीं दिए गए। दूसरे कर्मचारी को चार्ज नहीं लेने दिया तथा कुछ फाइल भी गायब कर दी गई। स्नेहलता के द्वारा दोबारा निवेदन करने पर शर्मा जी गाली गैलोच करने लग गया। स्नेहलता के सिर के ऊपर से पानी फिर गया था तो उसने शर्मा जी की धुनाई करदी। थप्पड़, मुक्के, लात खाकर वह सकपका गया।
आनन फानन में स्नेहलता के सस्पैंड आदेश निकल दिए गए और खूब हंगामा किया गया। मीडिया वालो को भी बुलाया गया। जिन लड़कियों का शर्मा जी ने नुकसान किया था वो भी दर कनमारे सारी स्नेहलता के विरोध में खड़ी थी। स्नेहलता अपनी जगह सही थी तो आखिरकार शर्मा जी को झुकना पड़ा तथा स्नेहलता वहां से रिलीव होकर नई जगह ज्वाइनिंग के लिए चली गई। अफसोस ये हुआ कि वहां भी हालत जस के तस थे। हर काम में बाधा उत्पन्न की जाती थी। जो चापलूसी करते वो नजदीक और जो गलत में साथ ना दे उसको दूर ड्यूटी दे दी जाती थी।
स्नेहलता बस यही सोच रही थी कि क्या हर सरकारी कार्यालय में यहीं हालात हैं। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि लड़की को हार कदम पर दबाया जाता है। जो डरकर बैठ जाएगी, उसको शोषण का शिकार होना पड़ेगा और जो अपने हक के लिए आवाज उठाएगी, गलत का विरोध करेगी उसको कठिनाइयों का सामना तो करना पड़ेगा, लेकिन कभी सिर झुकाने की आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। नारी शक्ति महान है, वो जो चाहे अपने बलबूते पर कर सकती है। इसलिए सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए हमें मुसीबत का सामना करना चाहिए।