सरकारी दफ्तर में भाग (9)
संजीव ने सोचा कि बाबू मेरी तरक्की से खुश होकर मिठाई मांग रहे है। इसलिए वह उत्साहित हुआ और इससे पहले कि बाबू आगे कुछ कह पाते संजीव तुरन्त बाहर चला गया, और बाहर जाकर उसने एक बढ़िया होटल पर पहुँचा और 10-12 स्पेशल चाय, समोसे और कुछ मिठाई पैक कराकर फटाफट उस बाबू के पास चल दिया।
होटल से लौटते वक्त संजीव आविद से मिला तो आविद ने कहा, ‘‘क्या बात भाईजान बड़े जल्दी में दिख रहे हो।
तभी संजीव ने आविद से कहा, ‘‘यार आविद भाई आज आपका मिलना मेरे लिये बहुत शुभ है मेरा चयन हो गया है इसलिये खुश होकर बाबू ने मिठाई मांगी है, वही देने जा रहा हूँ। मेरा भी नियुक्ति पत्र बन चुका है वही लेने जा रहा हूँ। संजीव की बातों पर आविद कोई प्रतिक्रिया देता तब तक वो दफ्तर की ओर बढ़ गया।
संजीव जब मिठाई लेकर दोबारा उस बाबू के पास पहुँचा तो 6-7 अभ्यर्थियों का साक्षात्कार हो चुका था जिनमेें से कुछ के चेहरे पर खुशी तो कुछ निराश थे जो खुश थे और जिनका चयन होे गया वे अपना नियुक्ति पत्र लेकर सीधे अपने घर की ओर निकल गये। संजीव ने मिठाई वहाँ खड़ेे दफ्तर के चपरासी को चाय समोेसेे और मिठाई दी और कहा, ‘‘इसेे पूूरे स्टाफ मेें बटवां दोे।’’ चपरासी ने चाय, समोसेे और मिठाई पूरे स्टाफ में बटवा दी।
थोड़ी देर बाद संजीव नेे बाबू से कहा, ‘‘सर ! अब तोे मेरेे नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर करा दीजिए।’’
बाबूू कुछ देर तक संजीव कोे एकटक देखता रहा और फिर कुछ सोचकर उसने चयन समीति को फोन किया। और फोन पर उसने कहा, ‘‘ सर अभी जो चाय, समोसेे और मिठाई आई है वह अभ्यर्थी क्रमांक 3 संजीव ने मंगाई है अब बताइये क्या करना है।’’ उधर से उत्तर आ रहे थे और बाबूू शान्त सुुन रहा था। कुछ देर बाद बाबू ने फोन काटा और अपनी दराज सेे एक कागज निकाला और संजीव से कहा, ‘‘ आप जरा बाहर जाइए, मैं अभी आपसे बात करता हूूँ।’’ संजीव जैसेे ही बाहर जानेे लगा, तभी बाबू ने अपनी दराज़ से एक कागज निकालने लगा और चपरासी को बुुलाया। कुछ देेर बाद चपरासी वही कागज लिए संजीव के पास आया और चपरासी ने कहा, ‘‘बाबू जी कह रहे हैं कि बाहर जाओ इसे पढ़ो और जैसा इसमे लिखा है वही करो।’’
संजीव ने उस कागज को देेखा और उसे बिना पढ़े ही सीधा बाबूू के पास भागता हुआ गया और बाबू से कहा, ‘‘सर येे तो मेरा ज्वाइनिंग लेटर नही है, शायद आपने गलत कागज देे दिया है।
बाबूू ने कहा, ‘‘आपने यह कागज पढ़ा।’’
संजीव, ‘‘नही सर!’’
बाबूू ने कहा, ‘‘पहले जाओ बाहर इसे पढ़ो और फिर आओ।’’
संजीव बाहर गया और उसने उस कागज को खोेलकर पढ़ा और एकदम स्तब्ध सा रह गया। उसमें लिखा था, ‘‘संजीव जी हम सभी आपके साक्षात्कार से बहुत प्रसन्न हैं, और हम सभी चाहते हैं, कि आपकी इस पद पर नियुुक्ति हो, लेकिन इस पद पर नियुक्ति होने के लिए लोगों ने मंत्रियों और उच्चस्त अधिकारियों को मुंह माँगी रकम दी है। हाँ अगर आप मात्र 20 हजार रूपयेे की व्यवस्था कर सकते हो, तो हम कुुछ कर सकते हैं।’’
उस कागज कोे पढ़कर संजीव आसक्त सा रह गया, क्योंकि संजीव के सामने उस वक्त दुनिया का असली चेहरा आ गया था। संजीव उस कागज को देखकर वर्तमान समाज का आकलन कर ही रहा था, कि पीछे से आविद ने संजीव केे कन्धेे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘क्योें मियाँ हो गया चयन कब से ज्वाइन कर रहे होे।’’ संजीव की आँँखों में उस वक्त आँसू थेे। और इस वक्त आविद की बातेें उसके दिल में किसी भाले के जैैसेे चुभ रही थी। आविद कोे देखकर संजीव को ऐसा लगा कि उसको पहले सेे पता हो कि येे सब कुुछ होने वाला हैैं। आविद ने जब संजीव केे सामने आकर उसका चेहरा देेखा तोे देखते ही उसेे सब कुुछ पता चल गया। आविद ने संजीव का चेहरा पढ़कर उसकी मनोदशा जान ली और फिर वह कागज संजीव ने आविद की ओर बढ़ाया, आविद ने उस कागज को लिया और पढ़कर संजीव से कहा, ‘‘उस समय जब तुम चाय लेकर अन्दर जा रहे थे, उस समय मैंने तुम्हे बुलाया। लेकिन तुमने मेरी बात नही सुनी। अब ये तो होना ही था बाॅस। ये तुम्हारे भगवान राम का युग नही है। ये कलियुग है बाॅस कलियुग ! यहाँ पानी तक मोल मिलाता भाई ! और ये तो सरकारी नौकरी है। सब पहले से सैट हो जाता है। ये इतने लोग जो आये हैं न, सब चेहरा दिखाने आये हैं।
कहानी अभी बाकी है…………………………….
मिलते हैं कहानी के अगले भाग में