सरकारी दफ्तर में भाग (8)
समीर के बाद अगला क्रम संख्या-2 का बुलावा आया, तो उस अभ्यर्थी ने साक्षात्कार कक्ष में जाने से पहलेे अपनेे मोबाइल से किसी को फोन किया और लगभग 2 से 4 मिनट बात करने के बाद वह साक्षात्कार कक्ष में दाखिल हुआ, और उस अभ्यर्थी के दाखिल होने के लगभग 10 मिनट बाद एक सफेद रंग की गाड़ी दफ्तर के उस प्रांगण में दाखिल हुयी उस गाड़ी से एक व्यक्ति उतरा और सीधे साक्षात्कार कक्ष में दाखिल हो गया। दफ्तर के बाहर खड़े अभ्यर्थी यह सारा नजारा अपनी आँखों से देख रहे थे, लेकिन कोेई भी यह नही समझ पा रहा था कि यह माजरा है। कुछ देर बाद वह अभ्यर्थी मुस्कराता हुुआ वापस आया। उसके चेहरे की मुस्कान उसकी सफलता की दांसता व्याँ कर रही थी। कि उसका चयन हो चुका है, क्योंकि उसके हाथ में ज्वाइनिंग लेटर था। वह हँसता हुआ बाहर निकला और आॅटो पकड़कर चला गया। कुछ देर बाद वह व्यक्ति भी वहाँ से निकला और चला गया। कुछ देर बाद मंत्री जी भी वहाँ से निकले और चले गये।
अभ्यर्थी नं0 2 समीर के बाद अभ्यर्थी नं0 3 यानि संजीव की बारी आयी, संजीव जो अभ्यर्थी नं0 1 को देखकर संजीव थोड़ा असहज हो गया था। वह अभ्यर्थी नं0 2 को देखने के बाद उसने कुछ राहत की साँस ली, और वह पूर्ण आत्मविश्वास के साथ साक्षात्कार कक्ष की ओर बढ़ा। साक्षात्कार कक्ष की ओर बढ़ते हुए, उस इमारत की दहलीज पर रूका जो कभी उसके दादा जी का राजमहल हुआ करता था। संजीव ने उस दहलीज को चूमा फिर चूमकर आगे बढ़ गया। संजीव जैसे ही राजमहल में दाखिल हुआ, कि उसके कानों में एक झंकार सी बजने लगी कि जैसे कोई ढ़ोल नगाड़े बजा रहा हो और उसका स्वागत हो रहा हो। उसके कानों में ऐसी ध्वनि सुनाई दे रही थी कि कोई कह रहा हो सावधान ! राजकुमार संजीव महल में प्रवेश कर रहे हैं। संजीव इस सुखद अनुभूति का अनुभव कर ही रहा था कि किसी ने उसे आवाज दी संजीव ! उनकी आवाज से संजीव अपनी उस ख्वावों से भरी दुनिया से वास्तविकता की जमीं पर लौट आया। जहाँ उसने देखा कि कुछ ही क्षणों में उसका साक्षात्कार होने वाला है, और एक चपरासी उससे कह रहा था कि आपको इस कक्ष में जाना है। चपरासी के बताने पर संजीव ने जैसे ही उस कक्ष में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी नजर उस कक्ष के दरवाजे के बिल्कुल सामने लगी एक तश्वीर पर गयी। वह किसी राजा की तश्वीर लग रही थी। संजीव ने उस तश्वीर को कुछ गौर से देखा तो उस तश्वीर के नीचे दाये कोने में एक नाम लिखा था राजा भानूप्रताप सिंह। अपने दादा जी की तश्वीर देखकर उसकी आँखे कुछ नम हो गई, क्योंकि उस दिन पहली बार संजीव ने अपनी दादा जी की तश्वीर देखी थी। संजीव तश्वीर की ओर देख ही रहा था कि चयप समीति के एक सदस्य ने उसे पुकारा, ‘‘मिस्टर संजीव !’’ उस आवाज से संजीव ने चयन समीति की ओर देखा और अपनी भावनाओं पर काबू पाकर चुपचाप उस सीट पर जाकर बैठ गया।
संजीव जब साक्षात्कार देने चयन समीति के सामने बैठा, तो उनमें से समीति के एक सदस्य ने उसकी नम आँखों को देख लिया था और संजीव से पूछा, ‘‘आर यू आॅल राइट मि0 संजीव ?’’
संजीव ने कहा, ‘‘यस सर आई एम ओके।’’
संजीव चयन समीति के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए बिल्कुल तैयार था। संजीव का साक्षात्कार प्रारम्भ हुुआ। चयन समीति के प्रत्येक सदस्यों ने एक से एक कठिन प्रश्न से संजीव को रूबरू कराया, लेकिन संजीव ने बड़ी निडरतसा और आत्मविश्वास के साथ सभी प्रश्नों के एक सही उत्तर दिये। संजीव का साक्षात्कार चल ही रहा था, कि चयन समीति के फोन खूब बजे जा रहे थे, और उन फोनों कोई कुछ नाम और नम्बर लिखवा रहा था। संजीव ने उस परिस्थिति को नजर अंदाज किया।
खैर कुछ देर बाद संजीव का साक्षात्कार लेने के बाद सबने उससे कहा, ‘‘संजीव आप वास्तव में बहुत काबिल हो और इस पद के काबिल हो, हम सबको तुम पर गर्व है, तुम्हारा ख्यन हो गया, जाओं और अपना नियुक्ति पत्र लेलो।’’
संजीव का हृदय खुशी से गद-गद हो गया, फिर एक चपरासी उसे उस कमरे से बाहर ले गया, और उस कमरे में ले गया, जहाँ एक कनिष्ठ लिपिक टंकण मशीन से नियुक्ति पत्र टाइप कर रहा था। संजीव जब वहाँ पहुँचा तो कनिष्ठ लिपिक भी किसी से फोन पर बात कर रहा था। एक-दो मिनट के अन्तराल के बाद जब लिपिक ने फोन काटकर संजीव की ओर देखा तो उसने संजीव से कहा, ‘‘मुबारक हो ! चयन समीति तुम्हारे साक्षात्कार से बहुत खुश है लाओ वो कागज दो जो चयन समीति ने तुम्हें दिया है। संजीव को चयन समीति ने साक्षात्कार के बाद उसे एक कागज दिया था जिसमें संजीव की साक्षात्कार के दौरान समीति का निर्णय उसकेे प्राप्तांक और उसकी अन्य व्यक्तिगत जानकारी का पूरा ब्योरा लिखा था क्योंकि उसी कोे देेखकर नियुक्ति पत्र बनता है। संजीव नेे अति शीघ्र्रता उस साक्षात्कार परिणाम पत्र उस बाबू कोे दे दिया। कनिष्ठ लिपिक के साथ शीघ्रता से संजीव का नियुक्ति पत्र टाइप कर रहा था। नियुक्ति पत्र टाइप होने की खटखट संजीव के दिल को बड़ा सुकून दे रही थी और उसी दौरान संजीव उस कक्ष को निहारने लगा, तभी संजीव ने अपनी वाई ओर देखा तो वहाँ एक स्त्रिी की तश्वीर लगी थी, जिसके नीचे उस रानी का नाम भी लिखा था संजीव ने उन्हे तुरन्त पहचान लिया कि ये उसकी दादी जी की तश्वीर है, और ये तश्वीर उसके दादा जी ने अपने हाथ से बनाकर उनकी शादी की 25 वीं वर्षगांठ पर दादी जी को भेंट की थी, और क्योकि उस तश्वीर को उसके दादा जी श्री भानूप्रताप सिंह ने अपने हाथों से बनाया थी, इसलिए उस तश्वीर को महाराजा श्री भानू प्रताप सिंह की निशानी और उनकी कलाकारी के तौर पर जाना जाता था। उस तश्वीर को देखकर संजीव फिर अपने अतीत में झांकने की कोशिश करने लगा। लगभग 6-7 मिनट बाद उस कनिष्ट लिपिक ने संजीव का लेटर टाइप करके उसे पुकारा तो उसकी आवाज से संजीव का ध्यान टूटा और एक बार वह फिर अपने वास्तविता के संसार में लौट आया, जहाँ उसके सामने रखा था उसके जीवन की मेहनत का वो फल जिसके लिए उस दिन वह आया था उस सरकारी दफ्तर में। उसने देखा तो उसके सामने रखा था उसका नियुक्ति पत्र।
बाबू ने संजीव से कहा, ‘‘ओ भाई साहब हिसाब-किताब हो गया या नही।
संजीव कुछ समझ नहीं पाया और बाबू से बोला, ‘‘सर मैं कुछ समझा नही।’’
बाबू ने कहा, ‘‘देखो ये तुम्हारा नियुक्ति पत्र टाइप तो मैंने कर दिया है लेकिन एक अधिकारी इस विभाग के प्रबन्ध निदेशक(एम.डी.) के हस्ताक्षर के बिना ये केवल एक कागज का एक मात्र टुकड़ा है।
दुनिया के फरेब से मुक्त संजीव उस बाबू की उन गोलमोल बातों को समझ नही पा रहा था। संजीव ने ब़ड़े स्पष्ट शब्दों में पूछा, ‘‘ सर मैं जानता हूँ कि बिना हस्ताक्षर के ये केवल मात्र एक टुकड़ा है तो आप इस पर एम.डी. साहब के हस्ताक्षर करा दीजिये न, अन्दर अभी साहब भी बैठे हैं अभी।
बाबू ने थोड़ा मुस्कराते हुये संजीव से कहा, ‘‘करा देंगे! करा देंगे। अब इतनेे बढ़े पद पर तुम्हारा चयन हुआ है तो कुछ चाय नाश्ता तो बनता ही है।
कहानी अभी बाकी है…………………………….
मिलते हैं कहानी के अगले भाग में