सम-सामयिक दोहे
सहिष्णु नर होता सफल, पकड़ सबूरी डोर |
असहिष्णु नर ढोर सम, चरता चारों ओर |
नगर, ग्राम, घाट, तट, सरिता की सौगात |
नारी समपुरण तभी, सीरत भी हो साथ |
बोया पेड़ बाबुल का, अपने आंगन बीच |
कांटे खुद पैदा किये, तुष्टिकरण को सींच |
महिलाएं होकर सबल, साथ रखें हथियार |
आत्मरक्षा के लिए, यही सिद्ध उपचार |
गाँधी टोपी पहनकर, दिया कबीरा रोय |
नेताओं की भीड़ में, गाँधी दिखा न कोय |
पड़ी सरों में भाँग है, पी-पी कर सब मस्त |
राम बचाए देश को, जो कुंठा से त्रस्त |