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20 Jul 2016 · 1 min read

सम-सामयिक दोहे

सहिष्णु नर होता सफल, पकड़ सबूरी डोर |
असहिष्णु नर ढोर सम, चरता चारों ओर |

नगर, ग्राम, घाट, तट, सरिता की सौगात |
नारी समपुरण तभी, सीरत भी हो साथ |

बोया पेड़ बाबुल का, अपने आंगन बीच |
कांटे खुद पैदा किये, तुष्टिकरण को सींच |

महिलाएं होकर सबल, साथ रखें हथियार |
आत्मरक्षा के लिए, यही सिद्ध उपचार |

गाँधी टोपी पहनकर, दिया कबीरा रोय |
नेताओं की भीड़ में, गाँधी दिखा न कोय |

पड़ी सरों में भाँग है, पी-पी कर सब मस्त |
राम बचाए देश को, जो कुंठा से त्रस्त |

Language: Hindi
3 Comments · 569 Views
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