सम्भावनाओ की तलाश ज़ारी है
सम्भावनाओं की तलाश ज़ारी है
कविता तुम्हें तलाशता हूँ
हर इक सम्भावना में
ख़ुशनुमा पलों की सरगम
अत्याचार अनाचार के विरुद्ध
मौन चीख में
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
लौटती लहरों की आवाजे़
उल्लास आन्नद के पलों में
घायल बसंत
लुप्त होती गौरैया
कोयल की कूक
मन की दाहक हूक
इन सब में परिलक्षित होती रहो
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
युद्ध की विभीषिका झेलते
देशो के
ध्वस्त शहरों के मध्य
करुणामयी मन की
मानवीयता का प्रतीक बन
जग का हसीन उजियारा हो जाओ
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
इतिहास गवाह है
विकास की दरें
विनाश की सरगर्मियां
कराहता हुआ गूंगा अँधेरा
खूनी साज़िशें
इन सब में इक किरण बो दो
करो आशाओं की खेती
इक क्रान्ति उगा
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
मीनाक्षी भटनागर
नई दिल्ली
स्वरचित