सम्भल जाओ अ नेताओं, ये जनता है, झुका देगी
सुनो और समझ लो ये ध्यान से अ नेताओं
के इस आग से न खेलो तुम
कुछ जागी है अभी और जागेगी
कुछ भड़की है अभी और भड़केगी
सम्भल जाओ अ नेताओं
ये जनता है झुका देगी
न समझो नादान इसको तुम
अगर ये फूल बरसाए
ये आई अपनी पर
तो कांटे भी चुभा देगी
सम्भल जाओ अ नेताओं
ये जनता है झुका देगी
न इतराओ के तुम इतना
बैठाया पलकों में गर तो
जिस लायक हो तुम
वो मन्ज़र भी दिखा देगी
सम्भल जाओ अ नेताओं
ये जनता है, झुका देगी
मिटा देगी, वजूद तुम्हारा
इसकी हसरत को न मारो तुम
किया रोशन तुम्हे इसी ने है
तो पल भर में ही दे बुझाएगी
सम्भल जाओ अ नेताओं
ये जनता है झुका देगी
©® मंजुल मनोचा ©®