सम्बन्ध रोगी और चिकित्सक का ( Doctor patient relationship)
एक दूसरे का आमना सामना होते ही रोगी और चिकित्सक के बीच में एक सम्बंध स्थापित हो जाता है जोकि मरीज की पृष्ठभूमि उसके संस्कारों उसके रिश्तेदारों के स्वभाव आदि पर निर्भर करता है । इस रिश्ते में चिकित्सक का पद , मान – सम्मान यथावत वही रहता है जो वो है वो वही रहता है पर हर रोगी के बदलते रोगी की निगाह में इस सम्बंध का स्वरूप बदलता जाता है ।
यह रोगी और चिकित्सक के बीच का सम्बन्ध या रिश्ता कई प्रकार का हो सकता है —
इस रिश्ते के प्रथम रूप में डॉक्टर भगवान स्वरूप रोगी और उसके तीमारदारों के बीच माना जाता है । यह संबंध सबसे अधिक खतरनाक होता है इसमें इस रिश्ते की बाजी पलटने में देर नहीं लगती । जिस रोगी और उसके तीमारदारों की नज़रों में चिकित्सक भगवान के स्वरुप है उन्हें उसे शैतान या हैवान समझने में देर नहीं लगती है , फर्क सिर्फ इस बात का होता है कि उनका रोगी अभी जीवित है या मृत अथवा ठीक हुआ या नहीं । रोगी के हालात के अनुसार बदलते ऐसे रिश्ते से प्रत्येक को सावधान रहना चाहिए । जो लोग इतने भोले हैं कि उन्हीं के जैसे एक सामान्य व्यक्ति को भगवान समझ सकते हैं वह अपनी उसी भोली समझ के चलते उसी चिकित्सक को शैतान समझने में देर नहीं लगाएंगे , फर्क सिर्फ इस बात का होगा कि उनका रोगी ठीक हुआ कि नहीं वो अभी जीवित है या मृत ।
एक दूसरा रिश्ता होता है जिसमें चिकित्सक को उसका रोगी और उसके रिश्तेदार अपने घर का कोई बड़ा बुजुर्ग बाबा – दादा या पिता अथवा भाई के तुल्य मान कर व्यवहार करते हैं और चिकित्सक को उसी प्रकार सम्मान देते हैं तथा उसके उपचार से लाभान्वित होते हैं । वे अपने घरेलू समारोहों के अवसर पर अपने चिकित्सक को सादर आमंत्रित कर उसकी आवभगत करते हैं ।वे चिकित्सक की हर सलाह को एक आदर्श मानकर स्वीकार करते हैं ।रोगी के उपचार में उत्पन्न स्थितियों को नियति मान कर स्वीकार करते चलते हैं ।
एक अन्य तीसरा सम्बंध होता है चिकित्सक और रोगी के बीच में मित्रवत व्यवहार का जिसमें रोगी चिकित्सक को अपने मित्र के समान समझकर व्यवहार करता है । एक रोगी जो दिल्ली में रहा करता था किसी कारण वह मेरे शहर में आकर मुझे दिखाने आया । उसकी बातों से पता चला कि वह एक नियमित शराबी था । चलते समय उसने मुझसे पूंछा
‘ मैं शराब कब , कहां और कितनी पी सकता हूं ? ‘
मैंने उसे मना करते हुए कहा कि आप पहले से शराब पीकर अपने जिगर को कमजोर बना चुके हैं और अब आपको शराब नहीं पीनी चाहिए ।
इस पर वह बोला डॉक्टर साहब दिल्ली में जिन डॉ साहब से मेरा इलाज़ चलता है उन्होंने मुझे सलाह दी है कि मैं उनके सामने बैठ कर के अपनी शराब की मात्रा का पेग तैयार करूं और क्योंकि वे डॉक्टर साहब भी शराब पीते हैं अतः मैं रोज शाम को उनकी क्लीनिक में जाता हूं और अपने घर से अपने पसंद की शराब की बोतल साथ ले जाता हूं उन्हीं की क्लीनिक में बैठ कर के वे अपना और मेरा पेग अपने सामने बनवाते हैं और फिर हम दोनों वहीं बैठकर शराब पी लेते हैं और मैं घर आ जाता हूं । इस प्रकार किसी डॉक्टर की निगरानी में शराब पीने से मुझे कोई नुकसान नहीं होता है । मुझे इस संबंध में उसका दिल्ली वाले डॉक्टर का उससे मित्रवत सम्बन्ध प्रतीत हुआ और शायद इसी मित्रवत सम्बन्ध और शराब पीने की सुविधा को खोजता हुआ वो मेरे पास आया था ।
एक चौथा रिश्ता होता है जिसमें चिकित्सक और रोगी के बीच के सम्बंध को एक ठेकेदार या किराए पर लिए हुए किसी व्यसायी की की दृष्टि से देखा जाता ह । अक्सर किसी ऑपरेशन के दौरान या उपचार में रोगी चिकित्सक से एक तयशुदा रकम तय कर लेते हैं और उसके पश्चात यदि उसमें कोई भी प्राकृतिक गडबड़ी होने पर वे उसी मूल्य में अपने पूरे उपचार को उसी ठेके पर करवाना चाहते हैं । ऐसे लोग अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि डॉक्टर साहब आपने इतना खर्चा बताया था और इतना लग गया , हमारा मरीज़ अभी तक ठीक क्यों नहीं हो रहा है ।ये लोग प्रायः आर्थिक तंगी का भी शिकार होते हैं । उपचार के उपरांत चिकित्सक को शुल्क करने में आनाकानी करते हुए उसे लुटेरा घोषित कर बदनाम करने का प्रयास करते हैं । ऐसे लोग अपने मित्रों और संबंधियों में जो कि उनके रोगी को देखने आया होता है या बाद में जब कभी किसी से मिलते हैं तो इस प्रकार की बातें हैं कहते पाए जाते हैं जैसे किसी ने पूछा कि उनकी पत्नी कैसे ठीक हुई तो उत्तर दें गे
‘ जब 30,000 लग गए तब जाकर ठीक हुई ।’
ऐसे लोगों की यदि भैंस बीमार पड़ जाए उस पर पत्नी के इलाज़ की तुलना में ज्यादा अधिक घन खर्च कर दें गे । शायद उनकी पत्नी के महंगे उपचार के प्रति अक्सर उनके मन में यह ख़्याल रहता है कि इससे कम खर्च में तो एक दूसरी पत्नी आ जाये गी । इन्हें सन्तुष्ट कर पाना मुश्किल होता है ।
पांचवा एक समकक्ष सहयोगी समान संबंध होता है ।यह व्यवहार अक्सर प्रशासनिक अधिकारियों , सुशिक्षित , बौद्धिक लोगों एवं चिकित्सकों के बीच स्थापित होता है ।इसमें परस्पर योगदान एवम समाज कल्याण की भावना से एक दूसरे को बराबर का सम्मान देते हैं ।व्यक्तिगत सम्बन्धों में भी ऐसे सुशिक्षित एवम बौद्धिक लोग शालीनता के दायरे में रह कर परस्पर लाभान्वित रहते हैं ।
छटा एक निकृष्टतम संबंध होता है जिसमें चिकित्सक को नौकर की दृष्टि से देखा जाता है । इसमें चिकित्सक को किसी अन्य व्यवसाय की तरह ही देखा जाता है ।इसमें यह मन जाता है कि चिकित्सक अब खरीद लिया है और अब उपचार और उसका नतीजा उनके मनोनुकूल होना चाहिए । जब कि उपचार चिकित्सक के विवेक और नतीजा उस रोगी की बीमारी , उसके भाग्य और हरि इक्षा पर निर्भर करता है । अन्य व्यवसायों की तरह यहां नतीजे सम्पूर्णरुप से सुनिश्चित नहीं किये जा सकते , इसीलिए यह व्यवसाय अभीतक उपभोक्ता कानून के दायरे से बाहर है और इसपर बहस होती रहती है ।
अक्सर ओछे जनप्रतिनिधियों में सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों के प्रति पाई जाती है जो आम जनता के सामने अपनी श्रेष्ठता और लोक लुभावन लोकप्रियता सिद्ध करने ओर उनका ध्यान अपनी ओर बटोरने के लिए अपनी योजनाओं की विफलता एवम संसाधनों की कमी का ठीकरा चिकित्सकों के ऊपर फोड़ कर उन्हें सरे आम फ़टकार कर अपमानित करने , में कुशल होते हैं । अपनी इस लोकप्रियता की सिद्धि के लिए ये किसी अन्य तीसरे व्यक्ति के हक़ का सहारा लेते हुए अपनी राजनीति लालसा पूरी करते हैं । उदाहरण के लिए किसी को कुत्ता के की सुई क्यों नहीं मिल पा रही है इसके लिए अस्पताल में अकारण उत्पात मचाने लगें गे , इसके विपरीत खुद के लिए आवश्यकता पड़ने पर विनीत भाव दर्शाएं गे ।इसका एक कारण उनके अहंकारी , पूर्वाग्रह से ग्रसित मन के भीतर चिकित्सकों के विरुद्ध छुपी कुत्सिक भावनाएं हो सकतीं हैं ।
चिकित्सक जो है वही रहता है पर हर रोगी के साथ उसका रिश्ता बदलता जाता है ।