सम्पूर्ण
सम्पूर्ण
यूँ ही कभी
कुछ खालीपन सा
एक अधूरापन सा
होता महसूस
चुभती एक वेदना
कष्ट एकाकिपन का
ज़िंदगी बेज़ार सी
उर टीस नासूर सी
ख़्वाहिश कभी
कभी आभास
कोई अपना ख़ास
आ जाता पास
कर देता मुझे पूर्ण
हो जाती मैं सम्पूर्ण
फिर कहीं सोचती
ख़्याल ये रोपती
क्यों कोई दूसरा
करे मुझको पूरा
दिल कहता जाग
तुझमें है वो आग
ख़ुद से ख़ुद में हो जा पूर्ण
अकेली ही बन जा संपूर्ण
रेखा